परिचय
- सिरोही के चौहनों की शाखा देवड़ा थी ।
- सिरोही का प्राचीन नाम “चंद्रवती ” था ।
- 1311 में लूमबा के द्वारा सिरोही में चौहानों की देवड़ा शाखा की स्थापना की थी ।
- लूमब से पहले इस आबू व चंद्रवती परमार को पराजित करके लूमबा ने अपना साम्राज्य स्थापित किया ।
- सिरोही के चौहनों की राजधानी “चंद्रवती व अचलगढ़” थी ।
- 1425 में इसी वंश के शासक सहसमल ने सिरोही की स्थापना की थी ।
- सहसमल के शासन काल में ही 1451 में सिरोही पर महाराणा कुंभा से अपना अधिकार कर लिया था ।
- कुंभा के पास ही सिरोही के अचलगढ़ में वसंती दुर्ग का जीर्णोद्धार करवाया था ।
- 1823 में सिरोही के शासक शिव सिंह के द्वारा अंग्रेजों के साथ संधि कर ली थी ।
- सिरोही रियासत वो रियासत थी जिसने अंतिम बार संधि की थी ।
- सिरोही रियासत का विलय राजस्थान एकीकरण में 6 चरण 26 जनवरी 1950 को हुआ ।
- आबू व देलवाडा प्रदेश का विलय 7 वे
आमेर के कछवाहा वंश
- कछवाहा वंश मूल रूप से ग्वालियर नरुतर प्रदेश का था ।
- कछवाहा शासक स्वयं को भगवान राम के पुत्र कुश का वंशज मानते थे ,
- कछवाहा वंश का शासक सर्वप्रथम ढूँढाड़ क्षेत्र में रहा था ।
- ढूँढाड़ जयपुर के आस पास के क्षेत्र को कहा जाता हैं ।
- रियासत के संदर्भ में कछवाहा वंश का शासक आमेर रियासत पर था ।
- वाहक ने ढूँढाड़ प्रदेश मीणा व बदगुर्जरों अपना साम्राज्य स्थापित किया ।
दूल्हेराय
- दूल्हेराय सोडा सिंह का पुत्र था ।
- दूल्हेराय का मूल नाम / वास्तविक नाम ” तेजकरण ” था ।
- दूल्हेराय ने 1137 में रामगढ़ के मीणा के दौसा को बराड़ गुर्जरों को पराजित करके कछवाहा वंश की स्थापना की ।
- कछवाहा वंश का मूल पुरुष दूल्हेराय को ही माना जाता हैं ।
- दूल्हेराय ने कछवाहा की प्रथम राजधानी ” दौसा को बनाया था ।
कोकिल देव
- कोकिल देव के द्वारा आमेर के सिहाओं को पराजित कर आमेर को राजधानी बनाया था ।
- आमेर के 1727 तक कछवाहा वंश की राजधानी थी ।
- आमेर का प्राचीन नेम अंबावती था ।
पृथ्वीराज कच्छवाहा
- पृथ्वीराज कछवाहा सांगा का सामंत था ।
- पृथ्वीराज कछवाहा ने खानवा के युद्ध में राणा सांगा का साथ दिया था ।
- पृथ्वीराज कछवाहा का विवाह बीकानेर का शासक बीकानेर के शासक लूनकरन्सर की पुत्री बाला बाई के साथ किया ।
- पृथ्वीराज कछवाहा ने बाला बाई के प्रभाव में आकर उसके पुत्र पूर्णमल को उत्तराधिकारी बना दिया था ।
- इस कारण पृथ्वीराज कछवाहा के पुत्र भीमदेव ने पूर्णमल को पराजित कर दिया था ।
- भीमदेव की कुछ समय बाद ही मृत्यु हो गई ओर उसका पुत्र रत्नसिंह शासक बना था ।
रत्नसिंह
- रत्न सिंह अय्याशी प्रवर्ती का थ ।
- इसने अफ़गान शासक शेरशाह सूरी की अधीनता स्वीकार कर ली थी ।
- इसके शासन काल में ही सांगा ने सांगानेर बसाया था ।
- रत्न सिंह को भारमल के कहने पर आस्करण के द्वारा जहर देकर मार दिया गया ओर फिर इसकी मृत्यु हो गई थ ई ।
- इसके बाद आस्करण यह का शासक बना था ।
भारमल
- ये राजस्थान का वह शासक हैं जिसकी दोस्ती पागल हाथी को नियंत्रित करते समय अकबर के साथ हुई थी ।
- 1562 में अकबर , चिसती जी की दरगाह पर जियारत करने आया था , इसी समय चगताई के सहयोग से भारमल की मुलाकात अकबर से हुई ओर उसने इस समय अकबर की अधीनता स्वीकार कर ली थी ।
- भारमल ही राजपुटाने का वह शासक हैं , जिसने मुगलों की अधीनता स्वीकार की थी ।
- उसने मुगलों के साथ वेवहिक संबंध स्थापित किए था ।
- अकबर अजमेर से वापस जा रहा था , उसी समय भारमल ने अपना पुत्री का विवाह हरका बाई का अकबर के साथ करवा दिया था ।
- इसी हरका बाई से जहांगीर का जन्म हुआ था ।
- जहांगीर के द्वारा हरक बाई को “मरियम उच्चमानी ” का नाम दिया गया था ।
- भारमल के सहयोग से ही 1570 में अकबर ने नागौर दरबार का आयोजन करवाया था ।
- भारमल ने हरक बाई के साथ ही भगवंत दास ओर मान सिंह को अकबर की सेवा में नियुक्त किया था ।
- अकबर ने 5000 का मनसब भारमल को दिया था ।
भगवंत दास
- इसके पिता भारमल , इसकी पुत्री का विवाह मानबाई का विवाह जहांगीर के साथ किया था ।
- मानबाई से खुसरो नामक बालक का जन्म हुआ था ।
- खुसरो ने पिता जहांगीर के खिलाफ विद्रोह कर दिया था , इसलिए मानबाई ने इसको जहर देकर मार दिया थ ।
- इतिहास में इसे पुत्रहनता की संज्ञा दी गई थी ।
मान सिंह
- इसके पिता भगवंत दास थ ।
- मान सिंह ने 1562 में ही मुगलों की अधीनता स्वीकार कर ली थी ।
- इसका जन्म 1550 में हुआ था , लालन पालन मोजमबाद में हुआ था ।
- मन सिंह प्रथम ही वो शासक हैं जिसने मुगलों की बावन साल सर्वाधिक तक सेवा की थी ।
- मान सिंह के द्वारा ही मुगलों के साम्राज्य विस्तार में सर्वाधिक योगदान दिया गाया था ।
- मान सिंह ही राजस्थान का वह शासक हैं जिसने सर्वाधिक 67 युद्ध लड़े ।
- मान सिंह को अकबर ने “फरजेंद्र ” की उपाधि दी ।
- मान सिंह को 1569 में रणथंबोर अभियान पर भेज गया। उस समय वह का शासक सुरजन सिंह हाड़ा था ।
- 1573 में अकबर द्वारा महाराणा प्रताप को समझने के लिए मन सिंह को भेज गाया था । द्वितीय शिष्ट मण्डल के रूप में भेज गया था ।
- 21 जून 1576 को हल्दीघाटी युद्ध में मान सिंह के द्वारा नेत्रत्व किया गया था , इस युद्ध में मान सिंह छल करके विजयी हुआ था ।
- 1586 मे मान सिंह को बंगाल अभियान पर भेज गया था , ओर इसने बंगाल के शासक केदारसिंघ को हरकर शीला माता की मूर्ति को आमेर लाया था ।
- 1587 में बिहार अभियान पर भेजा जहां पर मणसिंघ पूरी तरह सफल हुआ था ।
- 1589 में मन सिंह का राज्य अभिषेक हुआ था ।
- मान सिंह को अकबर के द्वारा 7000 का मनसब दिया गया था ।
- अकबर के 9 रत्नों मे से एक था ।
- अकबर द्वारा चलाए गए धर्म “दीन-ए-इलाही ” को मानने से इसने माना कर दिया था ।
- इस धर्म का एकमात्र हिन्दू अनुयायी “महेशदास – बीरबल ” था ।
- इसका स्थापत्य कला में योगदान – बिहार में मान सिंह नगर बसवाया था , बंगाल में अकबर नगर बसवाया था । “
- इसने काशी में माँन मंदिर, वृंदावन में गोविंद मंदिर , पटना में वैकुंठनाथ मंदिर ओर आमेर में शीलमत का मंदिर बनवाया था ।
- शीला माता के विषय में एक कहावत प्रसिद्ध हैं ।
‘सांगानेर को सांगो बाबों , गलता रो हनुमान ।
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आमेर की शीला देवी, लायो राजों मान । । “
मनसिंह के बारे में प्रचलित कहावत
- मान सिंह की एक रानी कनकवाती थी, जिसके जगतसिंह पुत्र हुआ ओर जन्म के कुछ समय बाद ही उसकी मृत्यु हो गई ।
- जगत सिंह की याद में जगत शिरोमणि मंदिर का निर्माण करवाया था । इसकी मंदिर श्री कृष्ण की मूर्ति थी, जिसकी मीरा बाई पूजा किया करती थी ।
- मान सिंह के द्वारा ही लाहोर में ” मीनाकारी ” की कला जयपुर ली गई थी ।
- मुरारी दान की प्रमुख रचना – मान चरित्र
मिर्जा राजा जयसिंह
- ये मान सिंह का पुत्र था ।
- मिर्जा राजा जयसिंह 3 समकालीन मुगल शासकों जहागिर, शाहजहाँ , ऑरेंगजेब था ।
- शाहजहाँ ने इसे मिर्जा की उपाधि दी थी ।
- ऑरेनजेब के द्वारा सवाई की उपाधि दी गई ।
- मिर्जा राजा जयसिंह ने 11 जून 1665 में ऑरेंगजेब की तरफ से शिवाजी पुरंदर की संधि की थी ।
- जय गढ़ का निर्माण भी इसी ने करवाया थ । इसका प्राचीन नम चील का टीला था । Eagle’s Eye
- जय गढ़ दुर्ग में कछुवाहा शासकों का राजकोष रखा जाता था ।
- इसका दरबारी कवि – बिहारी था । जिसकी प्रसिद्ध रचना बिहारी सतसई थी ।
- कवि बिहारी ने ही मिर्जा राजा जय सिंह को अय्याशी प्रवर्ती से मुक्त करवाया ।
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