आहड़ सभ्यता राजस्थान के उदयपुर में स्थित है। यहां आयड नदी के किनारे बसे हुए हैं।
इसकी खोज 1953 में अक्षय कीर्ति व्यास द्वारा की गई थी।
इस सभ्यता का उत्खनन 1955 से 56 के मध्य आरसी अग्रवाल और एचडी सांकलिया द्वारा किया गया था।
इस सभ्यता का प्राचीन नाम नाम ताम्रवती या तांबवती है
इस सभ्यता का स्थानीय नाम धूलकोट है जिसका अर्थ होता है रेत का टीला
आहड़ सभ्यता से सर्वाधिक तांबे तांबे के औजार मिले हैं इसीलिए आहड़ सभ्यता को संग्रह नगरी के नाम से भी जाना जाता है
जबकि ताम्र युगीन सभ्यता की जननी के नाम से गणेश्वर सभ्यता को जाना जाता है बस
यह सभ्यता बनास नदी के घाटों में विकसित हुई है इसीलिए इसे बनास सभ्यता या बनास संस्कृति भी कहा जाता है
गणेश्वर सभ्यता सीकर में स्थित है
प्राप्त अवशेष
इस सभ्यता से एक मकान जिसमें 6 चूल्हे प्राप्त हुए हैं
इस सभ्यता में तांबा गलाने के भट्टे प्राप्त हुए हैं
ऐसे सभ्यता में काले लाल लोहे के और मिट्टी के बर्तन प्राप्त हुए हैं
इस सभ्यता में बिना हाथ के जल पात्र हुए हैं अर्थात इस सभ्यता में बिना हत्थे वाले बर्तन प्राप्त हुए हैं
ऐसे सभ्यता में अन्न के भंडार प्राप्त हुए हैं जिन्हें स्थानीय भाषा में कोठे कहा जाता है
ऐसे सभ्यता में धान के अवशेष प्राप्त हुए हैं
ऐसे सभ्यता में तांबे के छह छक्के और तीन मुहरे प्राप्त हुए हैं जिनमें एक सिक्का यूनानी देवता अपोलो की मुद्रा है और 2 सिक्के त्रिशूल की मुद्रा के प्राप्त हुए हैं
इस सभ्यता में छापेखाने यानी कि ठप्पे खाने प्राप्त हुए हैं
इस सभ्यता की विशेषताएं
यह एक ग्रामीण सभ्यता थी
यह सभ्यता पितृसत्तात्मक थी
यह सभ्यता संयुक्त परिवार वाले थे
यहां पर मुर्दा लाशों को आभूषणों के साथ दफनाया जाता था
यहां का प्रमुख उद्योग तांबा गले ना और उसके औजार बनाना था
आहड़ सभ्यता में बस्तियों के 8 बार उजड़ कर वापस 8 बार बसने के सबूत मिलते हैं
यह सभ्यता ताम्र पाषाण कालीन संस्कृति से संबंधित है