सामाजिक विज्ञान नोट्स -रीट 2022 – सिरोही के चौहान

परिचय

  • सिरोही के चौहनों की शाखा देवड़ा थी ।
  • सिरोही का प्राचीन नाम “चंद्रवती ” था ।
  • 1311 में लूमबा के द्वारा सिरोही में चौहानों की देवड़ा शाखा की स्थापना की थी ।
  • लूमब से पहले इस आबू व चंद्रवती परमार को पराजित करके लूमबा ने अपना साम्राज्य स्थापित किया ।
  • सिरोही के चौहनों की राजधानी “चंद्रवती व अचलगढ़” थी ।
  • 1425 में इसी वंश के शासक सहसमल ने सिरोही की स्थापना की थी ।
  • सहसमल के शासन काल में ही 1451 में सिरोही पर महाराणा कुंभा से अपना अधिकार कर लिया था ।
  • कुंभा के पास ही सिरोही के अचलगढ़ में वसंती दुर्ग का जीर्णोद्धार करवाया था ।
  • 1823 में सिरोही के शासक शिव सिंह के द्वारा अंग्रेजों के साथ संधि कर ली थी ।
  • सिरोही रियासत वो रियासत थी जिसने अंतिम बार संधि की थी ।
  • सिरोही रियासत का विलय राजस्थान एकीकरण में 6 चरण 26 जनवरी 1950 को हुआ ।
  • आबू व देलवाडा प्रदेश का विलय 7 वे

आमेर के कछवाहा वंश

  • कछवाहा वंश मूल रूप से ग्वालियर नरुतर प्रदेश का था ।
  • कछवाहा शासक स्वयं को भगवान राम के पुत्र कुश का वंशज मानते थे ,
  • कछवाहा वंश का शासक सर्वप्रथम ढूँढाड़ क्षेत्र में रहा था ।
  • ढूँढाड़ जयपुर के आस पास के क्षेत्र को कहा जाता हैं ।
  • रियासत के संदर्भ में कछवाहा वंश का शासक आमेर रियासत पर था ।
  • वाहक ने ढूँढाड़ प्रदेश मीणा व बदगुर्जरों अपना साम्राज्य स्थापित किया ।

दूल्हेराय

  • दूल्हेराय सोडा सिंह का पुत्र था ।
  • दूल्हेराय का मूल नाम / वास्तविक नाम ” तेजकरण ” था ।
  • दूल्हेराय ने 1137 में रामगढ़ के मीणा के दौसा को बराड़ गुर्जरों को पराजित करके कछवाहा वंश की स्थापना की ।
  • कछवाहा वंश का मूल पुरुष दूल्हेराय को ही माना जाता हैं ।
  • दूल्हेराय ने कछवाहा की प्रथम राजधानी ” दौसा को बनाया था ।

कोकिल देव

  • कोकिल देव के द्वारा आमेर के सिहाओं को पराजित कर आमेर को राजधानी बनाया था ।
  • आमेर के 1727 तक कछवाहा वंश की राजधानी थी ।
  • आमेर का प्राचीन नेम अंबावती था ।

पृथ्वीराज कच्छवाहा

  • पृथ्वीराज कछवाहा सांगा का सामंत था ।
  • पृथ्वीराज कछवाहा ने खानवा के युद्ध में राणा सांगा का साथ दिया था ।
  • पृथ्वीराज कछवाहा का विवाह बीकानेर का शासक बीकानेर के शासक लूनकरन्सर की पुत्री बाला बाई के साथ किया ।
  • पृथ्वीराज कछवाहा ने बाला बाई के प्रभाव में आकर उसके पुत्र पूर्णमल को उत्तराधिकारी बना दिया था ।
  • इस कारण पृथ्वीराज कछवाहा के पुत्र भीमदेव ने पूर्णमल को पराजित कर दिया था ।
  • भीमदेव की कुछ समय बाद ही मृत्यु हो गई ओर उसका पुत्र रत्नसिंह शासक बना था ।

रत्नसिंह

  • रत्न सिंह अय्याशी प्रवर्ती का थ ।
  • इसने अफ़गान शासक शेरशाह सूरी की अधीनता स्वीकार कर ली थी ।
  • इसके शासन काल में ही सांगा ने सांगानेर बसाया था ।
  • रत्न सिंह को भारमल के कहने पर आस्करण के द्वारा जहर देकर मार दिया गया ओर फिर इसकी मृत्यु हो गई थ ई ।
  • इसके बाद आस्करण यह का शासक बना था ।

भारमल

  • ये राजस्थान का वह शासक हैं जिसकी दोस्ती पागल हाथी को नियंत्रित करते समय अकबर के साथ हुई थी ।
  • 1562 में अकबर , चिसती जी की दरगाह पर जियारत करने आया था , इसी समय चगताई के सहयोग से भारमल की मुलाकात अकबर से हुई ओर उसने इस समय अकबर की अधीनता स्वीकार कर ली थी ।
  • भारमल ही राजपुटाने का वह शासक हैं , जिसने मुगलों की अधीनता स्वीकार की थी ।
  • उसने मुगलों के साथ वेवहिक संबंध स्थापित किए था ।
  • अकबर अजमेर से वापस जा रहा था , उसी समय भारमल ने अपना पुत्री का विवाह हरका बाई का अकबर के साथ करवा दिया था ।
  • इसी हरका बाई से जहांगीर का जन्म हुआ था ।
  • जहांगीर के द्वारा हरक बाई को “मरियम उच्चमानी ” का नाम दिया गया था ।
  • भारमल के सहयोग से ही 1570 में अकबर ने नागौर दरबार का आयोजन करवाया था ।
  • भारमल ने हरक बाई के साथ ही भगवंत दास ओर मान सिंह को अकबर की सेवा में नियुक्त किया था ।
  • अकबर ने 5000 का मनसब भारमल को दिया था ।

भगवंत दास

  • इसके पिता भारमल , इसकी पुत्री का विवाह मानबाई का विवाह जहांगीर के साथ किया था ।
  • मानबाई से खुसरो नामक बालक का जन्म हुआ था ।
  • खुसरो ने पिता जहांगीर के खिलाफ विद्रोह कर दिया था , इसलिए मानबाई ने इसको जहर देकर मार दिया थ ।
  • इतिहास में इसे पुत्रहनता की संज्ञा दी गई थी ।

मान सिंह

  • इसके पिता भगवंत दास थ ।
  • मान सिंह ने 1562 में ही मुगलों की अधीनता स्वीकार कर ली थी ।
  • इसका जन्म 1550 में हुआ था , लालन पालन मोजमबाद में हुआ था ।
  • मन सिंह प्रथम ही वो शासक हैं जिसने मुगलों की बावन साल सर्वाधिक तक सेवा की थी ।
  • मान सिंह के द्वारा ही मुगलों के साम्राज्य विस्तार में सर्वाधिक योगदान दिया गाया था ।
  • मान सिंह ही राजस्थान का वह शासक हैं जिसने सर्वाधिक 67 युद्ध लड़े ।
  • मान सिंह को अकबर ने “फरजेंद्र ” की उपाधि दी ।
  • मान सिंह को 1569 में रणथंबोर अभियान पर भेज गया। उस समय वह का शासक सुरजन सिंह हाड़ा था ।
  • 1573 में अकबर द्वारा महाराणा प्रताप को समझने के लिए मन सिंह को भेज गाया था । द्वितीय शिष्ट मण्डल के रूप में भेज गया था ।
  • 21 जून 1576 को हल्दीघाटी युद्ध में मान सिंह के द्वारा नेत्रत्व किया गया था , इस युद्ध में मान सिंह छल करके विजयी हुआ था ।
  • 1586 मे मान सिंह को बंगाल अभियान पर भेज गया था , ओर इसने बंगाल के शासक केदारसिंघ को हरकर शीला माता की मूर्ति को आमेर लाया था ।
  • 1587 में बिहार अभियान पर भेजा जहां पर मणसिंघ पूरी तरह सफल हुआ था ।
  • 1589 में मन सिंह का राज्य अभिषेक हुआ था ।
  • मान सिंह को अकबर के द्वारा 7000 का मनसब दिया गया था ।
  • अकबर के 9 रत्नों मे से एक था ।
  • अकबर द्वारा चलाए गए धर्म “दीन-ए-इलाही ” को मानने से इसने माना कर दिया था ।
  • इस धर्म का एकमात्र हिन्दू अनुयायी “महेशदास – बीरबल ” था ।
  • इसका स्थापत्य कला में योगदान – बिहार में मान सिंह नगर बसवाया था , बंगाल में अकबर नगर बसवाया था । “
  • इसने काशी में माँन मंदिर, वृंदावन में गोविंद मंदिर , पटना में वैकुंठनाथ मंदिर ओर आमेर में शीलमत का मंदिर बनवाया था ।
  • शीला माता के विषय में एक कहावत प्रसिद्ध हैं ।

‘सांगानेर को सांगो बाबों , गलता रो हनुमान ।

आमेर की शीला देवी, लायो राजों मान । । “

मनसिंह के बारे में प्रचलित कहावत
  • मान सिंह की एक रानी कनकवाती थी, जिसके जगतसिंह पुत्र हुआ ओर जन्म के कुछ समय बाद ही उसकी मृत्यु हो गई ।
  • जगत सिंह की याद में जगत शिरोमणि मंदिर का निर्माण करवाया था । इसकी मंदिर श्री कृष्ण की मूर्ति थी, जिसकी मीरा बाई पूजा किया करती थी ।
  • मान सिंह के द्वारा ही लाहोर में ” मीनाकारी ” की कला जयपुर ली गई थी ।
  • मुरारी दान की प्रमुख रचना – मान चरित्र

मिर्जा राजा जयसिंह

  • ये मान सिंह का पुत्र था ।
  • मिर्जा राजा जयसिंह 3 समकालीन मुगल शासकों जहागिर, शाहजहाँ , ऑरेंगजेब था ।
  • शाहजहाँ ने इसे मिर्जा की उपाधि दी थी ।
  • ऑरेनजेब के द्वारा सवाई की उपाधि दी गई ।
  • मिर्जा राजा जयसिंह ने 11 जून 1665 में ऑरेंगजेब की तरफ से शिवाजी पुरंदर की संधि की थी ।
  • जय गढ़ का निर्माण भी इसी ने करवाया थ । इसका प्राचीन नम चील का टीला था । Eagle’s Eye
  • जय गढ़ दुर्ग में कछुवाहा शासकों का राजकोष रखा जाता था ।
  • इसका दरबारी कवि – बिहारी था । जिसकी प्रसिद्ध रचना बिहारी सतसई थी ।
  • कवि बिहारी ने ही मिर्जा राजा जय सिंह को अय्याशी प्रवर्ती से मुक्त करवाया ।

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