8 से 10 वी शताब्दी तक इस शैली का सर्वाधिक मंदिरों का निर्माण कराया गया था ।
इस काल को सांस्कृतिक दृष्टि से सुवर्ण काल भी कहा जाता हैं ।
दक्षिण पश्चिम राजस्थान में इस शैली से जुड़े सर्वाधिक मंदिरों का निर्माण करवाया ।
ये गुजरात की सोलंकी ( मारू शैली ) से प्रभावित रही ।
प्रतिहारों द्वारा जालोर , जोधपुर , मेड़ता नागोर, आभानेरी ओर बंधीकुई , चित्तोडगढ़ , बांसवाड़ा , डूंगरपुर , उदयपुर में जो शैली विकसित की गई । वो महमरु शैली कहलाई ।
इसके प्रमुख मंदिर निम्न हें –
महावीर जी का मंदिर – ओसिया जोधपुर – 8 वि शताब्दी में वतसराज द्वारा निर्मित ये महावीर जी के ज्ञात मंदिरों में प्राचीन मंदिर माना जाता हैं ।
जैन अंबिका मंदिर – घटियावल जोधपुर – इसका निर्माण 861 में कुककुक के द्वारा करवाया गया था ।
जगत अंबिका का मंदिर – उदयपुर – अल्हट के द्वारा
हर्षद मत का मंदिर – आभानेरी दौसा – यहाँ की चंद बावड़ी प्रसिद्ध हैं ।
कालिका मत का मंदिर – ये चित्तोडगढ़ में हैं ।
अथुना मत का मदिर – बांसवाड़ा में हैं
देवसोमनाथ का मंदिर – डूंगरपुर
सहस्त्र बाहु का मंदिर – उदयपुर
पंचायतन शैली
राजस्थान के इसे मंदिर जहां की 5 देवताओ की पूजा की जाती हैं जिनमे शिव , विष्णु , शक्ति , सूर्य ओर गणेश की पूजा की जाती हैं ।
पंचायतन शैली के मंदिर –
हरिहर मंदिर – जोधपूर
सात सहेलियों का मंदिर – झलरापाटन
जगदीश जी का मंदिर – उदयपुर
भंड देवरा का मंदिर – बारा
एकाइतन शैली
राजस्थान के इसे मंदिर जहां पर एक ही देवता की पूजा की जाती हैं । वहाँ एक गर्भगृह सभा मण्डल तथा एक द्वारा मण्डल हो , वह मंदिर एकाइतन शैली के माने जाते हैं ।
जैन समाज के अधिकांश मंदिर इसी शैली के बाने होते हैं ।
जैनियों के प्रसिद्ध मंदिर पालि ओर सिरोही में हैं ।
पाली का प्रसिद्ध मंदिर – रणकपुर ओर सिरोही का – देलवाड़ा मंदिर ।
नागर शैली के मंदिर
इस शैली के मंदिर उच्च शिखर के बाने होते हैं ।
इस शैली के मंदिर अधिकतर भारत के उत्तरी भाग ओर राजस्थान के मारवाड़ क्षेत्र में बाने हुए हीं ।
इसको आर्य शैली के मंदिरों के नेम से भी जाना जाता हैं ।
इस शैली के मंदिरों की सूची –
समिदवेश्वर मंदिर , चित्तोडगढ़
बाडोली का शिव मंदिर – चित्तोडगढ़
किराडू मंदिर , बाड़मेर । ये मंदिर प्रतिहारों में आखिरी निर्मित मंदिर माना जाता हैं । इस कारण ये भी प्रतिहार शैली में बना हुआ हैं।
द्रविड शैली
इस शैली के मंदिर पिरिमिडिय आकृति के बने होते हैं ।
इनका ऊपरी सिर गजप्रष्ट कहलाता हैं।
राजस्थान का सबसे बाद मंदिर रंगनाथ जी का मंदिर जो की पुष्कर में स्थित हैं , इसी शैली मे बना हुआ हैं ।
इस शैली के मंदिर दक्षिण भारत में सर्वाधिक हैं।
वेसर शैली
ये शैली नागर ओर द्रविड शैली की मिश्रित शैली हैं ।
इस शैली के मंदिर मध्य भारत में बाने हुए हैं ।
इनका निर्माण चालुक्य शासको द्वारा हुआ हैं । इस कारण इनको चालुक्य शैली का मंदिर भी कहा जाता हैं।
चालुक्य शैली पर द्रविड शैली का प्रभाव ज्यादा रहा था । इस कारण कर्नाटक में भी सर्वाधिक पाए जाते हैं ।