- अधिगम के क्षेत्र में ग्राफ का प्रयोग 1960 में J S Brunner ने किया था । अतः इन्हें अधिगम वक्र का जनक भी कहा जाता हैं ।
- ये ग्राफ सीखने की गति उन्नति को दिखाते हैं।
- सीखने में चार तरह के ग्राफ बनते है। जो 3 तरह की अवस्थाओं को प्रदर्शित करते हैं।

सरल रेखीय वक्र
जब समय के समान अनुपात में अधिगम की गति एवं मात्रा में भी वृद्धि होती है तो सरल रेखीय वक्र बनता है। सीखने में सबसे कम यही वक्र बनता है। इसमें सीखने की गति पूरे समय तक एक समान बनी रहती है। अधिगम की सर्वाधिक मात्रा अंतिम अवस्था में होती है।
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नकारात्मक / ऋणात्मक /उनतोदर वक्र
सीखने की प्रारंभिक अवस्था में अधिगम की गति बहुत तेज होती है और अंतिम अवस्था में कम हो जाती है तो उनतोदर वक्र बनता है। इस वक्त में अधिगम के सर्वाधिक मात्रा मध्य अवस्था में होती है। था सबसे कम मात्रा प्रारंभिक अवस्था में होती है।
यह नतोदर वक्र का उल्टा है
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सकारात्मक / धनात्मक / नतोदर वक्र
कितने की प्रारंभिक अवस्था में अधिगम की गति कम होती है और अंतिम अवस्था में अधिक हो जाती है तो यह वक्र बनता है । इस वक्र में अधिगम की सर्वाधिक मात्रा प्रारंभिक अवस्था में और सबसे कम मात्रा मध्य अवस्था में होती है।
समय के साथ अधिगम की गति और मात्रा दोनों बदलते रहते हैं। यहां मिश्रित वक्र बनता है। इस वक्र के आरंभ में नतोदर और इसके अंत में उनतोदर वक्र शामिल होता है।
सीखने में सर्वाधिक यही वक्र बनता है।
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