सामाजिक विज्ञान नोट्स -रीट 2022 -मारवाड़ का राठोड वंश

  • मारवाड़ में राठौड़ों के वंश को ही महत्वपूर्ण माना जाता है जिस का उद्भव 13वीं शताब्दी में शुरू हुआ था।
  • इसकी उत्पत्ति राष्ट्रकूट नामक शब्द से हुई थी। राष्ट्रकूट का प्राकृतिक रूप रट्टउड़ जो आगे चलकर राठौड़ कहलाया।
  • इनके उत्पत्ति के विषय में मत
    • भाटो के अनुसार हिरण्यकश्यप से हुई
    • जोधपुर ख्यात के अनुसार छोड़ो की उत्पत्ति विश्वतमन राजा के पुत्र बृहद बल से हुई।
    • नेनसी के अनुसार और चंद्र बरदाई के अनुसार मारवाड़ के शासक गहड़वालों की एक शाखा है।
    • जेम्स टॉड के अनुसार राठौड़ों की उत्पत्ति गहढ़वाल वंश के जयचंद के वंशजों से मानी जाती है।
    • जेम्स टॉड ने राठौड़ों को सूर्यवंशी कहा था
    • हीराचंद ओझा और गौरी शंकर ने चंद्रवंशी कहा था।

राव सीहा

राव सीहा मारवाड़ के राठौड़ों का मूल पुरुष या आदि पुरुष माना जाता है, यह राठौड़ों का संस्थापक भी माना जाता है।

राव चूड़ा

  • यह मारवाड़ के शासक वीरमदेव का पुत्र था।
  • इस के शासनकाल में मंडोर में मुस्लिम सत्ता बलवती थी। राव चूड़ा ने इंदा प्रतिहार शासकों से मिलकर मंडोर को प्राप्त किया। राव चूड़ा ने मंडोर को अपनी राजधानी बनाया। मंडोर का प्राचीन नाम मांडव्यपुर था।
  • राव चूड़ा ने अपने पुत्र रणमल को अपनी पुत्री हनसा बाई के विवाह की जिम्मेदारी सौंपी
  • रणमल ने बहन हनसा बाई का विवाह में मेवाड़ के बहुत बड़े शासक राणा लाखा के साथ कर दिया जिस कारण राव चूड़ा रणमल से नाराज हो गया और उसने अपने राज्य से रणमल को निकाल दिया।
  • रणमल ने मेवाड़ के शासक राणा लाखा की शरण ली और मेवाड़ में अपनी सत्ता स्थापित करने के लिए लालायित होने लगा
  • राव चूड़ा अपनी प्रिय रानी मोहिलानी के प्रभाव में आकर कान्हा को मारवाड़ का उत्तराधिकारी घोषित कर दिया
  • राव चूड़ा ही मारवाड़ का वह शासक है जिसने मारवाड़ में सामन्त व्यवस्था प्रारंभ की थी इस सामंत व्यवस्था का विरोध जय नारायण व्यास द्वारा किया गया था।
  • 1423 में राव चूड़ा की मृत्यु हो गई

रणमल

  • राव चूड़ा का बड़ा पुत्र रणमल था
  • रणमल से पहले मारवाड़ में कान्हा शासन कर रहा था जिसकी मृत्यु के बाद उसके पुत्रों में आपसी झगड़ा हो गया जिसका फायदा उठाकर रणमल ने मारवाड़ में अपनी सत्ता स्थापित कर ली
  • रणमल ने धीरे-धीरे मेवाड़ में भी अपने कदम मजबूत कर लिए और मेवाड़ के उच्च पदों पर राठौड़ों को नियुक्त कर दिया
  • रणमल ने इस कार्य से मेवाड़ के सामंत नाराज थे और इसी कारण चाचा और मोरा नामक व्यक्तियों ने मेवाड़ के शासक मोकल की हत्या कर दी
  • इस प्रकार रणमल ने मारवाड़ और मेवाड़ के मध्य दुश्मनी के बीज बो दिए
  • मोकल के पुत्र महाराणा कुंभा ने रणमल की प्रेमिका भारमली के सहयोग से 1438 में रणमल को जहर देकर हत्या कर दी।

राव जोधा

  • यह रणमल का पुत्र था
  • राव जोधा ने लोकदेवता हड़बूजी की सहायता से मंडोर पर शासन कर रहे अक्का सिसोदिया और आहाडा हिंगोला को पराजित करके अपना साम्राज्य स्थापित किया
  • हड़बूजी का जन्म नागौर भूडोल मैं हुआ था। इनकी पूजा जोधपुर में की जाती है, इनका वाहन सियार है। इनकी गाड़ी की पूजा की जाती है।

आवल भावल की संधि

  • यह संधि मेवाड़ के शासक कुंभा और राव जोधा के मंदिर हनसा बाई के सहयोग से हुई । इस संधि के अनुसार जोधा ने अपनी पुत्री से विवाह रायमल के के पुत्र के साथ कर दिया और रणमल द्वारा की गई शत्रुता वापस से मित्रता में बदल गई
  • राव जोधा ने 1453 में मंडोर को अपनी राजधानी बनाया लेकिन मंडोर दुर्ग के जर्जर हो जाने के कारण राव जोधा ने 1459 में जोधपुर नगर की स्थापना की और चिड़िया टूक की पहाड़ी पर मेहरानगढ़ दुर्ग का निर्माण करवाया
  • मेहरानगढ़ दुर्ग को मयूरध्वज गढ़ और गढ़ चिंतामणि के नाम से भी जाना जाता है।
  • मेहरानगढ़ दुर्ग की नीव करणी माता के द्वारा रखी गई
  • मेहरानगढ़ दुर्ग के बारे में रुडयार्ड किपलिंग ने कहा की इसका निर्माण शायद परियों और फरिश्तों ने किया है
  • मेहरानगढ़ में 3 तोप रखी हुई है
    • किलकिला तोप
    • शंभू बाण तोप
    • गजनी खान तोप
  • राव जोधा ने जोधपुर में जोदहेलल तालाब का निर्माण करवाया था
  • राव जोधा की मृत्यु 1489 में हुई थी
  • मेहरानगढ़ हादसा 2008 में हुआ था जिसकी जांच के लिए (चामुंडा माता के मंदिर में) चोपड़ा कमेटी बनाई गई थी

राव सांतलदेव

  • इनके पिता का नाम राव जोधा था
  • इनके द्वारा जैसलमेर में सांतलमेर कस्बा बसाया गया
  • सातल देव के शासनकाल में अजमेर के सूबेदार मल्लू खान के सेनापति घुडले खान के द्वारा गणगौर पूछते हुए 140 कन्याओं का अपहरण कर लिया गया था इसलिए सातल देव ने मल्लू खान पर आक्रमण कर दिया
  • घोंसणा युद्ध
    • यह युद्ध सातल देव और मल्लू खान के मध्य हुआ था जिसमें सांतल देव की जीत हुई। ऐसी गोद में सांथल देव ने मल्लू खान के सेनापति घुडले खान का सिर काटकर कन्याओं को मुक्त कराया। घुडले खान का सिर काटकर उसे तीरों से छेद कर कन्याओं को सौंप दिया गया और उन्होंने घुडले खान के सर को पूरे शहर में घुमाया
  • मारवाड़ में गणगौर पूछते समय कन्याओं के द्वारा एक छेद किए हुए घड़े में दीपक जलाकर शहर में घूमा जाता है और इस पर्व को घुडला पर्व के नाम से जाना जाता है
  • इस युद्ध में सातल देव के घायल होने पर कुछ समय बाद उसकी मृत्यु हो गई।

राव गाँगा

  • इनके पिता का नाम राव बागा था ।
  • यह मारवाड़ का वह शासक था जिसने सर्वाधिक 4000 सैनिक भेजकर महाराणा सांगा की सहायता की थी
  • राव ने जोधपुर में गंगाश्याम मंदिर का निर्माण करवाया था
  • इन्होंने जोधपुर में गंगेलाव तालाब , गंगा बाड़ी, गंगेशयाम जोधपुर का निर्माण करवाया था ।
  • राव गंगा के 2 पुत्र थे
    • मालदेव
    • वेरिसाल
  • यह अफीम का सेवन करता था एक दिन नशे में मस्त था और किसी तरह नशे की अवस्था में माल की खिड़की के पास खड़ा था और नशे में धुत होने के कारण वहां से गिर के मर गया।
  • इतिहासकार हीराचंद ओझा के अनुसार राव गाँगा के पुत्र मालदेव ने राव गंगा को माल से धक्का दे दिया इसीलिए गाँगा की मृत्यु हो गई।

राव मालदेव

  • इसके पिता का नाम राव गांगा था ।
  • इसका राज्य अभिषेक सोजत पाली में हुआ था
  • इसने अपने जीवन काल में 52 युद्ध जीते जबकि मानसिक ने 67 युद्ध जीते थे
  • राव मालदेव को फारसी इतिहासकारों ने हंस मत वाला शासक कहा है
  • राव मालदेव का विवाह जैसलमेर के शासक लूणकरण की पुत्री उमादे के साथ हुआ था
  • उमादे को रूठी रानी के नाम से भी जाना जाता है। जबकि रूठी रानी नामक रचना केसरी सिंह बारहठ ने लिखी थी
  • रानी उमा दे अजमेर के तारागढ़ दुर्ग में निवास करती थी इसी तारागढ़ में रूठी रानी का महल भी बना हुआ है
  • रूठी रानी को समझाने के लिए मालदेव ने ईसरदास नामक व्यक्ति को भेजा ।
  • रूठी रानीन आने के लिए तयार थी लेकिन महल की अन्य रानियाँ नहीं चाहती थी की रूठी रानी वापस आए इसलिए अन्ये रानियों द्वारा आशा बारहठ को रूठी रानी के पास भेज गाया । कहा गाया की उमादे किसी भी तरह से वापस नहीं आणि चाहिए। इसलिए आशा बारहठ ने एक दोहा सुनाया ।
    • मन रखे तो पीव तज , पीव रखे तज मन । दो गयंद ना बंधे , एकन खंभे ख़ाण ।
  • जिसके बाद उमादे फिर से रूठ गई और सिर्फ आजीवन रूठी रही और अंत में 1565 में मालदेव के मृत्यु के बाद उसकी पगड़ी के साथ सती हो गई
  • मालदेव की राजनीतिक उपलब्धियां
    • मालदेव ने मेवाड़ के शासक उदय सिंह को साम्राज्य प्राप्ति में साथ दिया था
    • 1534 में विक्रमादित्य को सैनिक सहायता दी थी
    • सर्वप्रथम भाद्राजून पर अपना अधिकार किया
    • मेड़ता के शासक वीरमदेव को पराजित करके अपना साम्राज्य प्राप्त किया
  • प्रमुख युद्ध
    • हीरा बाड़ी युद्ध – यह युद्ध मलदेव और नागौर के शासक दौलत खान के बीच हुआ इसमें मालदेव की जीत हुई
    • पहिबा साहिबा का युद्ध – यहां युद्ध बीकानेर के शासक राव जयसिंह और मालदेव के मध्य हुआ जिसमें मालदेव की जीत हुई
    • गिरी सुमेल का युद्ध – इसे जैतारण का युद्ध भी कहा जाता है। यह मालदेव और शेरशाह सूरी के मध्य लड़ा गया जिसमें शेर शाह सुरी विजय रहा। मालदेव की तरफ से जेता ओर कुपा सेनापति ने यह युद्ध लड़ा , इसी के विषय में यह कहा जाता है कि शेरशाह की सहायता मेड़ता के सशक्त वीरमदेव तथा बीकानेर के शासक राव कल्याणमल ने की थी राव कल्याणमल ने 20000 रुपए लगभग जेता ओर कुपा को रिश्वत के रूप में दिए , इसी कारण की वजह से मालदेव के सेनापति ऊपर रिश्वत का आरोप लग गया और इस कलंक को मिटाने के लिए जेता ओर कुपा ने पूरी वीरता के साथ यह युद्ध लड़ा। और यहां वीरगति को प्राप्त हो गए।
      • मालदेव युद्ध के पहले ही शिवाना के दुर्ग चला गया और वहां पर रहने लगा और युद्ध की कमान जेता ओर कुपा पर सोप दी ।
      • इसी युद्ध में शेरशाह सूरी ने चलते हुए युद्ध में नमाज पढ़ी ओर उसके बाद इसका एक सेनापति ” जलाल ख़ान जलवानी ” एक नई सेना के साथ युद्ध भूमि में अअ गया था जिसके कारण ये विजयी हुआ था ।
      • इस युद्ध के बाद शेरशाह सूरी ने कहा कि एक मुट्ठी भर बाजरे के लिए मैं हिंदुस्तान के बादशाहत खो देता
      • इसकी जानकारी अब्बास ख़ान सेर वाणी की किताब तारीख ए शेरशाही से मिलती हैं ।
    • हरमाडा का युद्ध
      • ये हाजी ख़ान ओर राणा उदय सिंह के मध्य हुआ था ।
      • ये रंगराज नामक वेश्या को लेकर हुआ था ।
  • राव मालदेव की एकमात्र ऐसा शासक था जिसने मृत्यु के समय अपनी गलतियों को स्वीकार किया
  • राव मालदेव की स्वीकारी हुई गलतियां
    • मैंने बुर्ज में एक महिला को चुनवा दिया
    • मैंने सांतलमेर दुर्ग को तुड़वा कर पोकरण दुर्ग बनवाया
    • मैंने अपने भाई बंधुओं को मारा
    • मैंने शेरशाह सूरी के आक्रमण के समय रण क्षेत्र को छोड़कर भाग गया
  • मालदेव द्वारा बनवाए गए दुर्ग
    • पोकरण का दुर्ग
    • मालकोट का दुर्ग
    • सारण दुर्ग

राव चंद्रसेन

  • इनके पिता मलदेव थे
  • ये मालदेव के तीसरे पुत्र थे ।
  • मालदेव के पहले पुत्र को रूठी रानी नें गोद ले लिया था । दूसरे पुत्र को मोटा राज्य उदय सिंह का मालदेव के साथ अच्छा संबंध नहीं था ।
  • राव चंद्रसेन के समकालीन मुगल बादशाह अकबर था ।
  • राज्यस्थान में 2 ही राजपूत शासक इसे थे जिन्होंने जीवन भर मुगलों की अधीनता स्वीकार नहीं की थी । महाराणा प्रताप ओर राव चंद्रसेन
  • राव चंद्रसेन को केई नामों से जाना जाता हैं
    • भूल बिसरा राजा
    • मारवाड़ का प्रताप
    • महाराणा प्रताप का अग्रदूत
    • मारवाड़ का पाठ प्रदर्शक
  • राजस्थान में छापामार युद्ध पद्दती में राव चंद्रसेन का दूसरा स्थान था । पहला उदयसिंह , राव चंद्रसेन , महाराणा प्रताप ।
  • 1564 में मोटा राजा उदायसिंह के कहने पर अकबर ने राव चंद्रसेन पर हुसैन कुली ख़ान के नेत्रत्व में सेनए अभियान भेज । तो राव चंद्रसेन जोधपुर छोड़कर ” भद्राजून ” की पहाड़ियों में भाग लिया ।
  • 1570 में अकबर ने नागोर में नागोर दरबार का आयोजन किया था जिसमे
    • बूंदी से सुरजन सिंह हाडा
    • जैसलमेर से हररे भाटी
    • बीकानेर से राव कल्याणमल
    • आमेर से भारमल
    • मारवाड़ से मोटा राज्य उदय सिंह
  • नागोर दरबार में राव राव चंद्रसेन ने भी भाग लेने के लिए आया। लेकिन वह पर अपने भी मोटा राजा उदय सिंह को देखकर वापस चल गाया । इसने नागोर दरबार का बहिष्कार किया था ।
  • 1571 मे अकबर ने राव चंद्रसेन पर जलाल ख़ान के नेत्रत्व में हमला कर दिया था । राव चंद्रसेन भाद्रजून को छोड़कर सिवानना में चल गाया था ।
  • 1572 में अकबर ने जोधपुर का उत्तराधिकारी बीकानेर के शशक रायसिंघ को नियुक्त कर दिया था ।
  • राय सिंह को जोधपुर का शासक बनाकर अकबर गुजरात अभियान के लिए चल गाया था ।
  • 1574 मे अकबर वापस रायसिंघ के साथ मिलकर राव चंद्रसेन पर हमला कर दिया था । लेकिन असफल रहा था ।
  • 1576 में अकबर ने शाहबाज ख़ान के साथ मिलकर राव चंद्रसेन प्र आक्रमण कर दिया था । राव चंद्रसेन सिवाना छोड़कर सारण की पहाड़ियों में चल गाया था।
  • राव चंद्रसेन वह शासक था जिसने अपने सैनिकों का खर्च चलाने के लिए अपना राजमुकुट तक बेच दिया था ।
  • जनवरी 1581 तक राव चंद्रसेन की सारण की पहाड़ियों में ही मृत्यु हो गई ।
  • 1583 तक मारवाड़ को खालसा घोषित कर दिया गाया था ।

मोटा राजा उदय सिंह

  • मोटा राजा उदय सिंह ने नागौर दरबार में ही अकबर की अधीनता स्वीकार कर ली थी ।
  • मोटा राजा उदय सिंह ही मारवाड़ का वह शासक था जिसने सबसे पहले मुगलों की अधीनता स्वीकार की थी ।
  • मोटा राजा उदय सिंह ने अपनी बेटी मानमति का विवाह अकबर के पुत्र सलीम के साथ तय कर दिया था ।
  • इसी मानमती के खुर्रम हुआ जो की शाहजहाँ कहलाया ।

सूर सिंह

  • इसको अकबर ने सवाई राज्य की उपाधि दी थी ।

गज सिंह

  • यह सूर सिंह का पुत्र था ।
  • इसका राज्य अभिषेक ” बुरहानपुर ” में हुआ था ।
  • इसके समकालीन मुगल बादशाह जहांगीर ओर शाहजहाँ था ।
  • जहांगीर के बेटे शाहजहाँ ने जहांगीर के खिलाफ विद्रोह कर दिया था जिसको दबाने के लिए जहांगीर ने गज सिंह को भेजा था , गज सिंह इसमे सफल रहा था । जहांगीर ने गज सिंह को ” दलथंबन ” की उपाधि दी थी । जबकि शाहजहाँ ने इनको मामू कहा था । मामू की उपाधि दी थी ।
  • गज सिंह के घोड़ों को शाही लाग से मुक्त रखा गाया था ।
  • गज सिंह की एक प्रेमिका थी “अनारा बेगम ” जिसके लिए गज सिंह ने अपना सारा खजाना लूट दिया था । इसी के नाम पर इसने जोधपुर में अनाराबावड़ी का निर्माण करवाया था ।
  • गज सिंह के दो पुत्र थे — अमरसिंह ओर जसवंत सिंह
  • गज सिंह द्वारा अमर सिंह को “नागौर की जागीर ” कहा था ।

मतिरे की राड

इस युद्ध में अमरसिंह और बीकानेर के करण सिंह के मध्य हुआ । इसमे अमरसिंह की जीत हुई थी ।

जसवंत सिंह (1638 – 1678 )

  • इनके पिता का नेम गज सिंह था ।
  • इनके समकालीन मुगल बादशाह शाहजहाँ ओर ऑरनगजेब थे ।
  • जसवंत सिंह के मुगल बादशाह शाहजहाँ से मधुर संबंध थे।
  • 1657 मे शाहजहाँ के पुत्रों में उत्तराधिकार को लेकर विवाद हो गाया था ।
  • धर्मत का युद्ध –
    • ये जसवंत सिंह ओर ऑरेंगजेब के मध्य लड़ा गया । ऑरेनजेब इसमे विजयी रहा ।
  • कवि राजा श्यामलदास के अनुसार धर्मत युद्ध से वापस लोटने के बाद जसवंत सिंह की रानी करमेटी ( जसवंत दे ) के द्वारा जोधपुर दुर्ग के दरवाजे बंद करवा दिए । ओर कहा की राजपूत शासक युद्ध क्षेत्र में विजयी होकर आते हैं । इसलिए यह राजपूत शासक नहीं कोई ओर ही हैं । दरवाजा खोलने से इनकार कर दिया ओर जसवंत के पुनः विजय का आश्वाशन देने पर खोल दिया ।

देवराई (1659)

  • इस युद्ध से पहले सवाई जय सिंह जयपुर के शासक के द्वारा जसवंत सिंह को समझाया गाया , इस पर जसवंत सिंह को समझाया गाया ओर इस पर जसवंत सिंह ने देवराई युद्ध में दारा सिंह का साथ नहीं देकर तटस्थ रहा ।
  • इस युद्ध के बाद जसवंत सिंह औरंगजेब ने जसवंत सिंह को दक्षिण में मराठों के दमन के लिय भेज लेकिन जसवंत सिंह वहाँ भी हर गाया ।
  • जसवंत सिंह को इसके बाद औरेनगजब ने सिंध में पिंडरियों के दमन के लिए भेज ओर उसी समय 1678 में अफगानिस्तान में जसवंत सिंह की मृत्यु हो गई ।
  • जसवंत सिंह की मृत्यु के बाद कुफ़र का दरवाजा खुल गाया ।
  • आज मेरा धर्म विरोधी मारा गाया । ]
  • जसवंत सिंह का दरबारी कवि मुहनोट नेनसी था जिसे मुंशी देवी प्रसाद ने राजस्थान का अबूल फजल कहा था । प्रमुख रचना – नेनसी री ख्यात , मारवाड़ र परगना री विगत
  • जसवंत सिंह द्वारा नेनसी पर गबन का आरोप लगाया जिस कारण नेनसी ने आत्महत्या कर ली थी ।
  • जसवंत सिंह की रानी जसमा दे के द्वारा जोधपुर में “रायका बाग पैलिस” बनवाया तह ।
  • जसवंत सिंह ने जोधपुर “कागा बागा ” का निर्माण करवाया ओर इसमे काबुल से मीठे अनार के पोदहे लाकर लगाए गए जो आज भी अपनी मिठास के कारण प्रसिद्ध हैं ।
  • जसवंत सिंह की याद में सरदार सिंह ने जोधपुर में जसवंत थड़ा का निर्माण करवाया था । जिसको राजस्थान का ताजमहल कहा गया था ।
    • मेवाड़ का ताजमहल – जग मंदिर महल
    • हाड़ोती का ताजमहल – अबली मिणी का महल

अजित सिंह

  • जसवंत सिंह का पुत्र था ।
  • जसवंत सिंह की मृत्यु के बाद उस समय जसवंत सिंह का कोई उत्तराधिकारी नहीं था । इसलिए उसकी रानिया जाहम ओर नरुकी गर्भवती थी । जाहम के गर्भ से अजित सिंह ओर नरुकी के गर्भ से दलथंबन का जन्म हुआ था ।
  • दलथंबन की शैशव अवस्था में मृत्यु हो गई थी ।
  • अजित सिंह के समकालीन मुगल शासक ऑरेंगजेब था । ऑरेंगजेब ने दोनों रानियों ओर अजित सिंह को कैद करवा दिया था ।
  • दुर्गादास राठोड ओर मुकुंद दास खींची के सहयोग से अजित सिंह को ऑरेंगजेब की गिरफ्त से निकाल दिया था ।
  • अजित सिंह को मेवाड़ के शासक राजसिंघ के द्वारा शरण दी गई । ओर अजित सिंह के नाम केलवा की जागीर कर दी गई थी ।
  • 1707 में ऑरणजेब की मृत्यु होने के बाद मारवाड़ के सूबेदार जफर कुली ख़ान को पराजित कर अजित सिंह मारवाड़ का शासक बना ।
  • अजित सिंह के द्वारा जोधपुर में “एक थंबा महल ” का निर्माण करवाया गया था । जिसे प्रहरी मीनार के नाम से जाना जाता हैं । जिसे शिवसिंघ के द्वारा डूंगरपुर में बनवाया गाया ।
  • जबकि एक थंबी महल डूंगरपुर में स्थित हैं जिसे शिव सिंह ने बनवाया था ।
  • अजित सिंह की धाय मा गोरा धाय थी ; जिसको मारवाड़ की पन्ना धाय के नाम से जाना जाता हैं ।
  • अजित सिंह ने अपनी पुत्री इन्द्र कंवर का विवाह मुगल बादशाह फर्रूखसिंह के साथ किया ।
  • अजित सिंह स्वयं एक एक विद्वान था । जबकि मारवाड़ का प्रथम पित्रहनता शासक कहा जाता हैं । जबकि मेवाड़ का सांभा था ।

दुर्गादास राठोड

  • ये आस्करण का पुत्र था ।
  • दुर्गादास राठोड को मारवाड़ का उद्दारक व मारू केसरी व मारवाड़ का अनसिंदया मोती भी कहा जाता हैं ।
  • दुर्गादास राठोड अजित सिंह का संरक्षक था ।

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