चित्तौड़ सभ्यता
यह सभ्यता चित्तौड़ सभ्यता के नाम से जाने जाते हैं । यह बैडच नदी के किनारे बसी हुई है। किसका प्राचीन नाम मध्यमीका था। शिवि जनपद की राजधानी थी इसीलिए इस सभ्यता से इस जनपद के सिक्के प्राप्त हुए हैं।
Read Now
मंडोर सभ्यता
यह सभ्यता जोधपुर में स्थित है। इस का प्राचीन नाम मंडवयेपुर है। यहां से रावण की मंडप मिली थी। रावण की पहली पत्नी मंदोदरी मंडोर की रहने वाली थी जोकि ओझा जाति की थी। मंदोदरी के नाम पर मंडोर का नाम मंडोर पड़ा। दशहरे को मंडोर का शोक दिवस भी कहा जाता है। मंडोर में रावण को नहीं जलाया जाता। मंडोर में राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय भी स्थित है। मारवाड़ के राठौड़ों की छतरियां में मंडोर में स्थित है। 33 करोड़ देवी देवताओं की साल भी मंडोर सभ्यता में स्थित है। नागणेची माताजी का मंदिर भी स्थित है।
बागोर सभ्यता
यह सभ्यता भीलवाड़ा में स्थित है। यह सभ्यता आफ कोठारी नदी के किनारे बसी हुई है। इस सभ्यता को महा सती यू का टीला भी कहा गया है । बागोर से प्राचीनतम पशुपालन के सबूत प्राप्त होते हैं। यहां से सर्वाधिक 14 प्रकार की फसलों के अवशेष भी प्राप्त होते हैं। यहां से सर्वाधिक 14 प्रकार की फसलों के अवशेष प्राप्त हुए हैं। इसीलिए बागोर को आदिम संस्कृति का संग्रहालय भी कहा गया है।
बालथल सभ्यता
बालाथल सभ्यता वल्लभनगर उदयपुर में स्थित है। इसे सभ्यता के उत्खनन कर्ता वीरेंद्र नाथ मिश्र है। इस सभ्यता का उत्खनन 1993 में किया गया। इस सभ्यता में कमरों के भवन, पांच लोहे गलाने के भटिया, पत्थर की ओखली, चाकू, और कुल्हाड़ी जैसे पात्र प्राप्त किए गए।